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Here is an essay on ‘Our Society’ for class 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Our Society’ especially written for school and college students in Hindi language.
व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों से समाज बनता है । व्यक्ति परिवार की इकाई है । परिवार एक आवश्यकता है तथा समाज एक संगठन है । पारस्परिक निर्भरता के कारण सामाजिकता का गुण मनुष्य में स्वभाव से है ।
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मनुष्य सामाजिक प्राणी है अत: समाज से पृथक रहकर वह अपनी आवश्यकताओं व हितों की पूर्ति नहीं कर सकता । समाज एक व्यवस्था है इसकी एक संरचना होती है । समाज के अपने संस्कार एवं शिक्षा होती है । बदलती परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के कारण समाज की मान्यताओं में परिवर्तन होता रहता है ।
हमारे समाज में अभी भी जातीय संकीर्णता, छुआछूत व्याप्त है । स्त्रियों को पुरूषों के समान स्थिति प्राप्त नहीं हो सकी है । इसके अतिरिक्त अन्य समस्याएं जैसे बाल-विवाह, मृत्युभोज, भिक्षावृत्ति, नशीले पदार्थों का सेवन, दहेज प्रथा आदि विद्यमान है ।
शिक्षा और लोकतंत्र:
शिक्षा का अर्थ समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप व्यक्ति का निर्माण एवं संस्कारित करना है । एक अच्छी शिक्षा द्वारा व्यक्तियों में जागृति लाकर समाज को उन्नत बनाया जा सकता है । प्राचीन भारत में समाज उन्नत व समृद्ध था । किन्तु सैकड़ों वर्षो की परतंत्रता के कारण देश व समाज की काफी क्षति हुई ।
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ब्रिटिश शासनकाल में भारतीयों की शिक्षा को अधिक महत्व नहीं दिया गया । तकनीकी शिक्षा शून्य थी । घरेलू उद्योग धन्धों को प्रोत्साहन नहीं दिया गया । स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत ने बड़ी संख्या में विद्यालय, महाविद्यालय एवं तकनीकी शिक्षा संस्थानों की स्थापना कर व्यक्तियों को शिक्षित करना प्रारम्भ किया । वर्तमान में शिक्षा को समुचित महत्व दिया जा रहा है ।
वर्तमान में तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा का भी उचित प्रबन्ध किया गया है । लोकतंत्र एक शासन प्रणाली है, इससे किसी भी देश की शासन व्यवस्था का संचालन किया जा सकता है । लोकतंत्र की सफलता विभिन्न कार्यक्षेत्रों में नागरिकों की सहभागिता पर निर्भर है ।
यह सहभागिता तभी प्रभावकारी हो सकती है जब नागरिक उचित और अनुचित में भेद कर सकने में समर्थ हों । अधिकारों के साथ कर्त्तव्यों की जानकारी ही नहीं उनका पालन करने में तत्परता हो । नागरिकों को राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय महत्व की समस्याओं की समझ हो ।
शिक्षा से व्यक्ति जागरूक व उत्तम नागरिक बनते हैं । उत्तम नागरिक लोकतंत्रीय सरकार के संचालन में सहज सहयोग देते है । केवल शिक्षित एवं सजग नागरिक ही लोकतन्त्र के विकास में सहायक हो सकते हैं । हमारे देश में 15 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों में एक बड़ी संख्या (लगभग 35 प्रतिशत) निरक्षर हैं । इनके लिए जन साक्षरता कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं । इस कार्यक्रम का लक्ष्य केवल पढ़ना-लिखना सिखाना भर नहीं है बल्कि ‘कार्यात्मक साक्षरता’ प्राप्त करना है ।
कार्यात्मक साक्षरता का अभिप्राय इस प्रकार है:
i. आत्मनिर्भरता (पढ़ाई, लिखाई व गणित में)
ii. अपने अभावों के कारणों को जानना,
iii. अभाव के कारणों को दूर करने का प्रयास करना,
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iv. राष्ट्रीय एकता और अखण्डता, पर्यावरण संरक्षण, छोटे परिवार का महत्व जानना ।
प्रमुख सामाजिक समस्याएं:
हमारे देश के विकास में कुछ सामाजिक समस्याएं बाधक हैं । इनमें से प्रमुख हैं: साम्प्रदायिकता, भाषावाद, जातिवाद, पृथकतावाद, शिक्षा का अभाव, परिवार में महिलाओं की स्थिति एवं नशीले पदार्थों का सेवन, बालश्रम इन समस्याओं के विषय में है ।
1. शिक्षा का अभाव:
लोकतांत्रिक राज्य के लिए शिक्षा अति आवश्यक है । शिक्षित नागरिक लोकतंत्र के विकास में सहायक होते हैं । शिक्षित व्यक्ति विभिल सामाजिक बुराईयों से स्वयं दूर रहता है तथा अन्य व्यक्तियों को भी इस हेतु प्रेरित करता है । भारत में प्राचीन काल से ही सुव्यस्थित शिक्षा की परम्परा रही है ।
ब्रिटिश काल में सीमित प्रयास किये गए अत: केवल 18 प्रतिशत लोग ही शिक्षित हो सके । स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इस दिशा में काफी प्रयास किये गए किन्तु वर्तमान में भी लगभग 65 प्रतिशत लोग ही शिक्षित हो सके हैं अभी भी बड़ी संख्या में लोग अशिक्षित हैं ।
शिक्षित व्यक्ति न केवल सामाजिक बुराईयों से बच सकता है बल्कि वह अपने अर्जित ज्ञान से विज्ञान व तकनीक का प्रयोग करके उत्पादन क्षमता में वृद्धि कर सकता है । इस तरह अपने श्रम का समुचित मूल्य प्राप्त करके अपनी आय में वृद्धि कर सकता है । अत: शिक्षा प्राप्त करना सभी के लिए अति आवश्यक है ।
अब हमारी सरकार निरक्षरों को साक्षर बनाने हेतु प्रयासरत हैं । नई-नई योजनाओं द्वारा बच्चों को पढ़ने हेतु स्कूल लाने का प्रयत्न किया जा रहा है । म॰प्र॰ में पढ़ना बढ़ना संघ गावों में बनाए गये हैं । हम जानते है कि शिक्षित नागरिक ही लोकतन्त्र और देश के विकास में सहायक हो सकते हैं । इसलिये हमें इस देश से अज्ञानता और अशिक्षा को समाप्त करना है ।
2. परिवार में महिलाओं की स्थिति:
हमारे प्राचीन ग्रंथों एवं धर्मशास्त्रों में नारी को समुचित स्थान दिया गया है । कालान्तर में महिलाओं के प्रति दुर्व्यवहार होने लगा । महिलाओं के क्रिया-कलाप घर-गृहस्थी तक सीमित हो गए । इनके द्वारा घर में भोजन पकाना, बच्चों की देखभाल करना, खेतों में काम करना, ईंधन एकत्रित करना जैसे कार्य किये जाने लगे ।
यद्यपि ये कठिन कार्य हैं किन्तु महिलाओं को परिवार में बराबर का स्थान नहीं मिला । परिवार अथवा समाज में किए जाने वाले महत्वपूर्ण निर्णयों में महिलाओं की भागीदारी लगभग शून्य हो गई । गांवों एवं कस्बों में अभी भी यह दशा देखने को मिलती है ।
वर्तमान में शहरों में तो जहाँ महिलाओं द्वारा पुरूषों के द्वारा किये जाने वाले कार्यों को भी किया जा रहा है फिर भी उन्हें घर में बच्चों की देख- भाल, भोजन बनाना जैसे कार्य करना अनिवार्य समझा जाता है । चूँकि हमारा समाज पुरूष प्रधान है अब बदलते समय के साथ इस दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना आवश्यक है, अब सेवा के अनेक क्षेत्रों में जैसे शासकीय- अशासकीय सेवाओं, पुलिस व रक्षा सेनाओं, विज्ञान एवं खेल के क्षेत्र में अनेकों महिलाएं सफलतापूर्वक कार्य कर रही हैं ।
कुछ परिवारों में कम दहेज लाने पर प्रताड़ित करना बालिका के जन्म लेने पर अप्रसन्नता जैसे भेदभावपूर्ण व्यवहार देखने सुनने में आते रहते हैं । शिक्षा द्वारा नारियों को अपने अधिकारों से अवगत कराया जा रहा है ।
कानून द्वारा वे किस प्रकार अपनी रक्षा कर सकती है इसकी जानकारी दी जा रही है । अगर देश की जनसंख्या के आधे भाग अर्थात् महिलाओं को समुचित स्थान नहीं दिया जायगा तो भारत में प्रजातंत्र सफल नहीं हो सकेगा ।
3. नशीले पदार्थों का सेवन:
मद्यपान एवं धूम्रपान भी एक सामाजिक बुराई हैं । भारत जैसे विकासशील देशों में ये आदतें परिवारों का विघटन कर रही हैं । नशे के आदी व्यक्ति घर पर बच्चों एवं महिलाओं पर अत्याचार करने लगते हैं । इससे घर की शांति भंग होती है, आर्थिक तंगी भी बढ़ती हैं ।
ऐसे परिवारों का समाज में सम्मान भी कम होता है । आजकल शहरी युवाओं में स्मैक, ब्राउनशुगर, गुटका के सेवन को फैशन के रूप में लिया जाता है । विभिन्न प्रकार के पान मसाले गुटका पाउचों के रूप में ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में इनका सेवन बढ रहा है ।
ऐसे पदार्थ स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालते हैं, अत: इनके सेवन से बचना चाहिए तथा अन्य को भी हतोत्साहित करना चाहिए । वर्तमान में कानून बनाकर भी सार्वजनिक स्थानों, बसों, रेलगाड़ियों आदि में मद्यपान व धूम्रपान दण्डनीय अपराध घोषित कर दिया गया है ।
विभिन्न प्रकार के नशे के आदी व्यक्तियों को यह आदत छुड़वाने के लिए चिकित्सकों की सहायता भी ली जा सकती हैं । नशा मुक्ति केन्द्र एवं आध्यात्मिक प्रवचन इसमें बहुत सहायक हो रहे हैं । नशे की बुरी आदत के कारण अपराध बढ रहे है चारित्रिक गिरावट आ रही है ।
इस दिशा में गाँधीजी द्वारा किये गए प्रयासों को सफलता मिली है । भारतीय संविधान के भाग 4 में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्तों में शराब व नशीली वस्तुओं के सेवन को रोकने के लिये सरकार को निर्देशित किया गया है ।
4. बालश्रम:
बच्चे इस देश का भविष्य हैं । भावी नागरिक होने के नाते बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त हैं । इतना ही नहीं उनके लिये भोजन, वस्त्र, स्वास्थ्य, शिक्षा व खेल कूद की भी व्यवस्था होनी चाहिये ताकि वे मजबूत और सुदृढ़ भारत का निर्माण कर सकें ।
हमारी जनसंख्या का एक बड़ा भाग 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों का है । जिसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती । हमारा देश विकास की ओर निरन्तर अग्रसर है । आज भी अधिकांश बच्चों को पौष्टिक और भरपेट भोजन, तन ढँकने के लिये वस्त्र नहीं मिल पाता है ।
जिन स्थानों पर वे निवास करते है वहाँ गंदगी के कारण बदबू रहती है । निर्धनता, कुपोषण और अशिक्षा से बाल दुराचरण एवं किशोर अपराधों में वृद्धि हो रही है । अपना पेट भरने के लिये एवं परिवारिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये छोटी आयु में ही उन्हें काम करने के लिये मजबूर होना पड़ता है । जबकि इस आयु में इन्हें स्कूल जाना चाहिये ।
14 वर्ष से कम आयु के बच्चों का काम करना बालश्रम कहलाता है । सरकार द्वारा 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के काम करने (बालश्रम) को प्रतिबन्धित कर दिया गया है । कारखानों, होटलों, दुकानों और घरों में बच्चों से काम कराना कानूनी अपराध है ।
अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति व अन्य पिछड़ा वर्ग का कल्याण:
एक लोकतंत्रीय देश में सभी नागरिकों को समान अधिकार दिये जाते हैं । हमारे देश में कुछ जातियाँ सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ी हुई हैं तथा आर्थिक रूप से भी कमजोर हैं । भारतीय संविधान द्वारा इनके विकास के लिए तथा शेष समाज के समान स्तर पर लाने के लिए विशेष व्यवस्थाएं की हैं ।
स्वतंत्रता से पूर्व समाज में ये जातियाँ उपेक्षित, शोषित एवं निर्धन रहीं । वर्तमान में भी इनमें निर्धनता निरक्षरता शेष है । कभी-कभी इनके शोषण व अत्याचार की घटनाएं देखी-सुनी जाती है । इन जातियों की अपनी सामाजिक विशेषता है, अत: इनके संरक्षण एवं विकास के लिए राज्य द्वारा विशेष व्यवस्था की गई है ।
i. भारत के संविधान में इनके हितों व अधिकारों का उल्लेख किया गया है । अस्पृश्यता को अपराध घोषित किया गया है ।
ii. संविधान द्वारा इन वर्गो को संरक्षण प्रदान किया गया है ।
iii. अन्याय तथा शोषण से मुक्ति के लिए कानून बनाये गए है ।
iv. लोक सभा, विधान सभाओं, स्थानीय स्व-शासन संस्थाओं में इनकी जनसंख्या के आधार पर स्थान आरक्षित किये गए है ।
v. इनके कल्याण के लिए अलग मंत्रालय, विभाग, पुलिस व न्यायालय में प्रकोष्ठ बनाये गए है ।
vi. शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्थान आरक्षित हैं तथा छात्रवृत्ति आदि की व्यवस्था की गई है ।
vii. निर्धारित न्यूनतम योग्यता प्राप्त कर लेने पर शासकीय सेवाओं में स्थान आरक्षित किये गए हैं । इन वर्गो को योग्यता सम्बन्धी शर्तो में भी कुछ छूट दी गई है ।
शासकीय स्तर पर अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए विशेष ध्यान तो दिया जाता है, किन्तु यह (कल्याण) इस पर भी निर्भर है कि हमारे शेष समाज की मनोवृत्ति इनके प्रति सहयोग की हो ।
वर्तमान में शिक्षा के प्रसार और जागरूकता से स्थिति में सुधार हो रहा है । इन जातियों के लोग अब लोक सेवकों, वैज्ञानिकों, न्यायाधीशों जैसे पदों पर कार्य कर रहे हैं । इनमें शिक्षा का प्रतिशत बढ़ रहा है । इनकी आर्थिक-सामाजिक दशा में भी सुधार हो रहा है ।